" इन्सान ,
घर बदलता है ...
लिबास बदलता है ...
रिश्ते बदलता है ...
दोस्त बदलता है ...
फिर भी परेशान क्यों रहेता है ....
क्योकि वो खुद को नहीं बदलता ... "
इसलिए मिर्ज़ा ग़ालिब ने कहा था :
"उमर भर ग़ालिब..
यही भूल करता रहा,,,
धूल चहेरे पे थी
और आईना साफ करता रहा!!!"
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